जब इश्क़ ही काग़ज़ी हो" - तेरा जाना लाज़मी था, मेरा शायर बनना मुक़द्दर।eBookजब इश्क़ ही काग़ज़ी हो" - तेरा जाना लाज़मी था, मेरा शायर बनना मुक़द्दर।vonRahul MehraBewertung: 0 von 5 Sternen0 Bewertungenजब इश्क़ ही काग़ज़ी हो" - तेरा जाना लाज़मी था, मेरा शायर बनना मुक़द्दर। für später speichern